मिलजुल कर कार्य करने का सबसे अच्छा उदाहरण हमें प्रकृति देती है।चींटियों की सहयोग भावना को कौन नहीं जानता कि वह कैसे लोहे की ज़ंजीर की तरह आपस में एक दूसरे से जुड़कर गोलाकार छल्ले बनाकर बड़ी-बड़ी नदियों तक को पार कर लेती है। दीमक भी तो इसीलिए अपना अस्तित्व बनाए हुए है, मधुमक्खियाँ भी तो इसी नीति को अपनाकर छत्ता बनाती है।जब तुच्छ समझे जाने वाले पशु -पक्षी एवं कीड़े -मकोड़े तक सहयोग एवं संगठन -शक्ति का महत्व समझते हैं तो कोई कारण नहीं कि विकसित और बुद्धिमान कहा जाने वाला मनुष्य साथ -साथ मिलजुल कर कार्य न कर सके ।अपने ‘मैं’ को दरकिनारे कर ‘हम’ के सिद्धांत पर कार्य करने से ही आज के युग में सफलता मिल सकती है।बारिश की एक बूँद , तूफ़ान की तुलना में क्या है ।एक विचार ,मन की तुलना में क्या है।’मैं’ की स्वार्थ परक संकीर्ण भावना से ऊँचे उठकर हाथ की पाँच उँगलियों की तरह रहना , आज की आवश्यकता बन गई है क्योंकि ये हैं तो पाँच लेकिन काम सहस्रों कर लेती हैं।मिलजुल कर काम करने से मुश्किल से मुश्किल काम भी सरल हो जाते हैं।समय की बचत तो होती ही है, तमाम बाधाओं को भी दूर किया जा सकता है।किसी ने ठीक ही कहा है—
एक -एक फूल से बनती है माला
एक -एक धागे से बनती है दूशाला
घर बनता है एक -एक ईंट से
घोंसला बनता है एक -एक तिनके से
एक -एक बूँद से बन जाती है नदिया
एक -एक फूल से खिल जाती है बगिया
मुट्ठी में जो शक्ति है, वह उँगलियों में नहीं
रस्सी में जो ताक़त है , वह धागे में नहीं
इसी तरह –
‘हम’ में जो महा शक्ति है
वह
‘मैं’ की स्वार्थ परता में नहीं
वह
‘मैं’ की संकीर्णता में नहीं।
श्रीमती धीरज दरबारी
हिंदी विभाग अध्यक्षा
रामजस विद्यालय
आर . के . पुरम, नई दिल्ली -21